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जातिगत जनगणना: कांग्रेस की दोहरी राजनीति पर मोदी सरकार का सटीक प्रहार

यह लेख जातिगत जनगणना के मुद्दे पर कांग्रेस और मोदी सरकार के दृष्टिकोणों की तुलना करता है। लेखक का तर्क है कि कांग्रेस ने इसे केवल चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, जबकि मोदी सरकार ने इसे नीतिगत निर्णय के रूप में आगे बढ़ाया है। लेख में कहा गया है कि मोदी सरकार के इस कदम ने कांग्रेस की दोहरी मानसिकता को उजागर किया है और उसके राजनीतिक लाभ उठाने की संभावना को कम कर दिया है।

जातिगत जनगणना का मुद्दा भारत की राजनीति में दशकों से उठता रहा है, लेकिन इसे अब तक केवल वोट बैंक की रणनीति के तौर पर इस्तेमाल किया गया। कांग्रेस ने इस विषय पर कभी स्पष्ट और ईमानदार रुख नहीं अपनाया, बल्कि इसे केवल चुनावी हथियार की तरह प्रयोग किया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने जिस प्रकार इस मुद्दे पर निर्णायक कदम उठाया है, उसने न केवल कांग्रेस की दोहरी मानसिकता को उजागर किया है, बल्कि उसे राजनीतिक रूप से चौंका भी दिया है।

साल 2010 में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने लोकसभा में जातिगत जनगणना का वादा किया था, लेकिन वह इसे ईमानदारी से लागू नहीं कर सकी। उस समय अधूरे और अव्यवस्थित सर्वेक्षण कराकर केवल खानापूर्ति की गई। कांग्रेस ने न तो सही आंकड़े जुटाए और न ही उनके आधार पर कोई ठोस नीति बनाई। इससे यह साफ होता है कि कांग्रेस की मंशा सिर्फ जातियों को भड़काकर वोट बटोरने की थी, न कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की।

इसके विपरीत, मोदी सरकार ने इस मुद्दे को एक नीतिगत दिशा दी है। कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स के ऐतिहासिक फैसले के तहत अब अगली जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल किए जाएंगे। यह निर्णय केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, नीति निर्माण और संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण की ओर एक ठोस कदम है।

कांग्रेस ने वर्षों तक दलित-मुस्लिम तुष्टिकरण को ही सामाजिक न्याय का नाम दिया। उसकी राजनीति का केंद्र बिंदु हमेशा एक खास समुदाय को खुश करना और बहुसंख्यक हिंदू समाज को जातियों में बांटकर कमजोर करना रहा है। लेकिन मोदी सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि अब राजनीति केवल तुष्टिकरण से नहीं चलेगी, बल्कि प्रतिनिधित्व और विकास के आधार पर होगी।

इस फैसले के बाद कांग्रेस के लिए जातिगत जनगणना का मुद्दा हथियाना आसान नहीं रहेगा। मोदी सरकार ने कांग्रेस के हाथ से वह मुद्दा छीन लिया है, जिसे वह आगामी चुनावों में एक अस्त्र की तरह इस्तेमाल करना चाहती थी। अब जब भाजपा स्वयं इस विषय पर निर्णायक कदम उठा चुकी है, कांग्रेस की स्थिति असहाय और विचार शून्य हो गई है।

इस निर्णय से यह भी सिद्ध हुआ है कि भाजपा जातियों को तोड़ने नहीं, बल्कि जोड़ने की बात करती है। आंकड़ों की पारदर्शिता से ही समाज के पिछड़े वर्गों को सटीक लाभ दिया जा सकता है यह केवल नारेबाज़ी से नहीं होता।

आज समय है कि हिंदू समाज कांग्रेस की भेदभावपूर्ण राजनीति को पहचाने और उस नेतृत्व का साथ दे जो सच्चे अर्थों में समरसता और नीति आधारित न्याय की ओर बढ़ रहा है। जातिगत जनगणना एक राजनीतिक दांव नहीं, बल्कि वैचारिक बदलाव का प्रतीक बनकर उभरी है और इसका श्रेय मोदी सरकार को ही जाता है।

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