कांग्रेस पार्टी के पाकिस्तान के प्रति नरम रुख और आतंकवाद को लेकर उसकी नरमी भरी नीतियां कोई नई बात नहीं हैं। स्वतंत्रता के बाद से ही कांग्रेस ने पाकिस्तान के साथ ऐसा व्यवहार किया है, जिससे भारत की सुरक्षा और संप्रभुता को नुकसान पहुँचा है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद कांग्रेस नेताओं के विवादास्पद बयान इसी मानसिकता की पुष्टि करते हैं। आइए, इतिहास के पन्नों से कुछ ऐसे ही प्रमाण देखते हैं जो कांग्रेस के पाकिस्तान प्रेम को उजागर करते हैं।
1. 1947: कश्मीर मुद्दे को UN ले जाकर नेहरू ने बढ़ाई मुसीबत
1947 में जब पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला किया, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय सेना को पूरा कश्मीर मुक्त कराने से रोक दिया और मामले को संयुक्त राष्ट्र (UN) में ले गए। यह एक ऐतिहासिक भूल थी, जिसके कारण कश्मीर समस्या आज तक अनसुलझी है। नेहरू ने युद्धविराम का फैसला करके पाकिस्तान को कब्जे वाले कश्मीर (PoK) पर कब्जा जमाने का मौका दे दिया। अगर उस समय पूरा कश्मीर मुक्त करा लिया गया होता, तो आज आतंकवाद की यह समस्या नहीं होती।
2. करगिल युद्ध (1999): पाकिस्तानी घुसपैठियों को “मुजाहिदीन” कहा
1999 के करगिल युद्ध के दौरान जब पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सीमा में घुसपैठ करके चोटियों पर कब्जा कर लिया, तो कांग्रेस नेता और तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने पाकिस्तानी सैनिकों को “मुजाहिदीन” कहकर संबोधित किया। यह शब्दावली पाकिस्तान की उसी “छद्म युद्ध” नीति को बढ़ावा देती है, जिसमें वह आतंकवादियों को “स्वतंत्रता सेनानी” बताता है। भारतीय सेना के 500 से अधिक जवानों के बलिदान के बाद ही करगिल को मुक्त कराया जा सका, लेकिन कांग्रेस की नरम नीति ने पाकिस्तान को यह संदेश दिया कि भारत कमजोर इरादों वाला देश है।
3. 26/11 मुंबई हमले के बाद कोई ठोस कार्रवाई नहीं
2008 में 26/11 के मुंबई आतंकी हमले में 166 निर्दोष लोग मारे गए। इसके बावजूद, तत्कालीन कांग्रेस सरकार (मनमोहन सिंह) ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई सख्त सैन्य कार्रवाई नहीं की। सिर्फ कूटनीतिक दबाव बनाया गया, जिसका पाकिस्तान पर कोई खास असर नहीं हुआ। इसके विपरीत, मोदी सरकार ने 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक के जरिए पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब आतंकवाद को माफ नहीं करेगा।
4. पुलवामा हमले के बाद राहुल गांधी का राजनीतिकरण
2019 में पुलवामा आतंकी हमले में 40 CRPF जवान शहीद हुए। इसके बजाय देश को एकजुट करने के, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर “हमले का राजनीतिकरण” करने का आरोप लगाया। यह वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने “हिंदुत्व आतंकवाद” जैसा शब्द गढ़कर आतंकवाद को हिंदुओं से जोड़ने की कोशिश की थी। क्या यही “राष्ट्रवाद” है?
कांग्रेस की नीतियां देशहित के खिलाफ
कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि वह पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाती रही है। चाहे वह कश्मीर को UN में ले जाना हो, करगिल युद्ध में “मुजाहिदीन” शब्द का प्रयोग हो, 26/11 के बाद निष्क्रियता हो या पुलवामा पर राजनीति, कांग्रेस ने हमेशा पाकिस्तान को फायदा पहुँचाया है।
आज भी कांग्रेस के नेता पाकिस्तान से बातचीत की वकालत करते हैं, जबकि भाजपा सरकार का रुख स्पष्ट है – “आतंकवाद और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते।” अगर कांग्रेस वाकई देशभक्ति का दावा करती है, तो उसे अपने नेताओं की जुबान पर लगाम लगानी चाहिए। वरना, जनता ने पहले ही समझ लिया है कि कांग्रेस की प्राथमिकता देश नहीं, बल्कि सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है।