आज जब कांग्रेस पार्टी पूरे देश में “संविधान बचाओ रैली” निकाल रही है, तो एक सवाल हर देशभक्त भारतीय के मन में उठता है कि आखिर किस मुंह से कांग्रेस संविधान बचाने की बात कर रही है? देश को ये नहीं भूलना चाहिए कि अगर भारतीय लोकतंत्र और संविधान को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई गई है, तो उसके लिए जिम्मेदार सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ही रही है। आज जब कांग्रेस खुद को संविधान की रक्षक बताने का ढोंग कर रही है, तब उसके इतिहास के काले पन्ने हमारे सामने खुलकर बिखरते हैं।
कांग्रेस के काले कारनामे
आजादी के बाद सत्ता के नशे में चूर कांग्रेस ने लोकतंत्र की भावना को कुचलना शुरू कर दिया था। सत्ता पर अपना एकाधिकार बनाए रखने के लिए उन्होंने संविधानिक संस्थाओं का खुला दुरुपयोग किया। राज्यों में बार-बार राष्ट्रपति शासन थोपना, गैर-कांग्रेसी सरकारों को गिराना, संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करना, ये सब कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बन चुका था। आज जो लोकतंत्र मजबूत दिखता है, वह कांग्रेस की वजह से नहीं, बल्कि भारतीय जनता की जागरूकता और मोदी सरकार जैसी राष्ट्रवादी नेतृत्व की देन है।
कांग्रेस ने लोकतंत्र की आत्मा को रौंदा डाला था
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्याय 25 जून, 1975 को लिखा गया, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता बचाने के लिए आपातकाल थोप दिया। देश में नागरिक अधिकारों को खत्म कर दिया गया, प्रेस की आजादी पर ताला जड़ दिया गया, लाखों निर्दोष नागरिकों को जेलों में ठूंस दिया गया। अदालतें भी तब सत्ता की कठपुतली बन गईं। संविधान को उस समय कुचला नहीं गया था, उसे जिंदा जला दिया गया था। और इस पूरे पाप की सूत्रधार थी कांग्रेस पार्टी, जिसने लोकतंत्र की आत्मा तक को रौंद डाला।
कांग्रेस ने संविधान की मूल भावना को किया तहस-नहस
इसी कांग्रेस ने 1984 के सिख दंगों में खून की होली खेली। दिल्ली की सड़कों पर सिखों को बेरहमी से मारा गया और कांग्रेस नेता खुलकर हमलावरों का नेतृत्व करते रहे। राजीव गांधी का वह बयान कि “जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है” भारतीय संविधान की मूल भावना का सबसे घिनौना अपमान था। जो पार्टी अल्पसंख्यकों की रक्षा का दावा करती है, उसी ने सत्ता की खातिर निर्दोष नागरिकों का नरसंहार कराया।
सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है कांग्रेस
अगर हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात करें तो कांग्रेस का असली चेहरा फिर बेनकाब होता है। 1986 में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो केस में ऐतिहासिक फैसला सुनाया, लेकिन कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला था, जिसे सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक के लालच में अंजाम दिया गया था। यही कांग्रेस का असली चरित्र है, सत्ता के लिए संविधान की गरिमा तक दांव पर लगाना।
कांग्रेस ने दिया कठपुतली प्रधानमंत्री
2004 से 2014 तक यूपीए सरकार के दौरान संविधान का फिर से अपमान हुआ। प्रधानमंत्री पद जैसी सर्वोच्च संवैधानिक संस्था को एक विदेशी मूल की नेता के अधीन कर कठपुतली बना दिया गया। मनमोहन सिंह को “नौटंकी प्रधानमंत्री” का तमगा यूं ही नहीं मिला; वह कांग्रेस के सत्ता लोभ की सच्चाई का जीता-जागता प्रमाण थे। पूरा देश जानता है कि उस समय असली सरकार 10 जनपथ से चलती थी, न कि प्रधानमंत्री कार्यालय से।
कांग्रेस का हाथ आतंकियों के साथ
आज जब कांग्रेस उन लोगों के साथ खड़ी दिखती है जो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारों को सही ठहराते हैं, तो समझना चाहिए कि यह पार्टी अब राष्ट्रवाद से कितनी दूर जा चुकी है। जिन्हें भारत की अखंडता से परहेज है, जो देशद्रोही मानसिकता वालों को “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का कवच पहनाकर बचाना चाहते हैं, वे ही आज संविधान बचाने का नाटक कर रहे हैं।
सच यह है कि भारतीय संविधान आज अगर सुरक्षित है तो वह नरेंद्र मोदी जैसे नेतृत्व की वजह से है, जिसने लोकतंत्र को मजबूत किया, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई और हर नागरिक को समान अवसर प्रदान किए।
देश को गुमराह कर रही है कांग्रेस
कांग्रेस की संविधान बचाओ रैली वास्तव में कांग्रेस की सत्ता बचाओ कोशिश है। जनता को गुमराह करने की नाकाम साजिश है। लेकिन आज का भारत जानता है कि संविधान की असली रक्षा करने वाले कौन हैं और संविधान को बार-बार रौंदने वाले कौन।
देश को अब इन नौटंकीबाजों के झूठे आंसुओं पर नहीं, अपने अटल विश्वास पर चलना है। राष्ट्र सर्वोपरि है, और राष्ट्रवादी सरकार ही संविधान की असली प्रहरी है।